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क्यों पसंद हैं हरदम तुमको फूलों के ही साये ?
अश्वनी कुमार पाठक
क्यों पसंद हैं हरदम तुमको फूलों के ही साये ?
किस अलबेले चित्रकार से, तुमने पंख रंगाये ?
क्यों कहते हैं बच्चे तुमको, तितली, तितली रानी?
क्यों लगती तुम उनको इतनी, प्यारी और सुहानी?
तुम्हें देखकर मुन्ना-मुन्नी, नन्हें हाथ बढ़ाते।
पंख तुम्हारे चुटकी में, आते-आते रह जाते।
तुम फूलों पर बैठ-बैठ कर, मीठा रस पीती हो।
भौरों से बतियाती रहती, मस्ती में जीती हो।
8 टिप्पणियाँ:
क्यों पसंद हैं हरदम तुमको फूलों के ही साये ?
किस अलबेले चित्रकार से, तुमने पंख रंगाये ?
सब नैनो टेक्नोलोजी का कमाल है भैया ,तितलियों और मोर पंख की नयनाभिराम छटाएं .बढ़िया बाल गीत .बधाई .कृपया यहाँ पधारें और शिरकत करें ,जाकिर भाई . रविवार, 22 अप्रैल 2012
कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र -- भाग तीन
कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र -- भाग तीन
डॉ. दाराल और शेखर जी के बीच का संवाद बड़ा ही रोचक बन पड़ा है, अतः मुझे यही उचित लगा कि इस संवाद श्रंखला को भाग --तीन के रूप में " ज्यों की त्यों धरी दीन्हीं चदरिया " वाले अंदाज़ में प्रस्तुत कर दू जिससे अन्य गुणी जन भी लाभान्वित हो सकेंगे |
वीरेंद्र शर्मा
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बहुत सुन्दर बाल गीत...
बहुत सुंदर बाल कविता रही तितलियों के रंगें पखों की बात यह तो अपनी समझ से बाहर हैं :)
khubsurat geet....
very soft and fragile piece of a true
poetry, indded fantastic. congrates
जय हिन्द !
बहुत ही प्यारी कविता है?बिल्कुल बाल-मन की भाषा में.बधाई बच्चों की जुबां बनने के लिए.इसे पढ़ाकर वह गीत याद आगया'यह कौन चित्रकार है?'
बाल मन को लुभाती सांगीतिक रचना ......कृपया यहाँ भी पधारें -http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_7883.html./http://veerubhai1947.blogspot.in/
शनिवार, 5 मई 2012
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