बातें हैं रंगीन
देवेन्द्र कुमार
बाबा के हैं बाल सफेद
पर उनकी बातें रंगीन।
सुबह टहलने रोज निकलते
अपने काम सभी खुद करते
छत पर उनकी कसरत का तो
मजेदार होता है सीन।
हरदम कुछ-कुछ करते रहते
दादी से बिन बात झगड़ते
नकली दाँत दिखाकर पूँछे
मुँह में दाँत बचे क्यों तीन।
रोज कहानी हमें सुनाते
अपने बचपन में ले जाते
बोले, अब दुनिया घूमूँगा
कल सपने में देखा चीन।
4 टिप्पणियाँ:
वाह ज़ाकिर जी बाबा जी के ऊपर प्यारा बालगीत--बच्चे पसंद करेंगे…।
बाबा की बातें आपकी लेखनी से अच्छी लगी
बहुत सुन्दर कविता... इसे पढ़कर तो मुझे मेरे दादाजी याद आ गए मैं उन्हें ये कविता ज़रूर सुनाऊँगी... थैंक्यू अंकल!!!
बाबा की बातें अच्छी लगीं ...
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