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बादल जी, बोलो क्‍या तुम भी पढ़ने जाया करते हो?

बादल जी, बोलो क्‍या तुम भी पढ़ने जाया करते हो?
या फिर केवल गड़-गड़-गड़ शोर मचाया करते हो? ?

सुबह-सुबह मुझको तो मेरी मम्‍मी रोज जगा देती,
अलसाई आँखों से मीठे सपने दूर भगा देती,

देर हुई विद्यालय मे तो टीचर अलग सजा देती,
कहो, किसी से सजा कभी क्‍या तुम भी पाया करते हो?

सुनते हैं तुमको ऊपर से सारी दुनिया दिखती है,
बोलो, क्‍या सचमुच ऊपर से प्‍यारी दुनिया दिखती है?

फूलों जैसी सुंदर राजकुमारी दुनिया दिखती है ?
जिसपर तुम अपने आँचल की ठण्‍डी छाया करते हो?
नील गगन में रहते हो तुम तो हो जाते सैलानी,
प्‍यारी धरती के होठों को छूकर हो जाते पानी,

 कभी-कभी तो तुम्‍हें देखकर होने लगती हैरानी,
 इन्‍द्रधनुष के रंग किस तरह तुम बिखराया करते हो?

10 टिप्पणियाँ:

Sunil Kumar said...

वाह बादलों कि शिकायत ! बहुत सुंदर , बधाई

Chaitanyaa Sharma said...

Bahut hi pyari kavita...

सुधाकल्प said...

बाल सरीखी बाल कविता--भोली -भाली,दिल को हरनेवाली।
सुधा भार्गव

रुनझुन said...

थैंक्यू अंकल! बहुत ही सुन्दर सी प्यारी-प्यारी कविता है... बिल्कुल हम बच्चों के मन की बातें...

कुमार राधारमण said...

बच्चों का मन। बच्चों की दुनिया। और,इन सबकी कसक लिए हम सब।

virendra sharma said...

इतना सुन्दर बाल मन की कोमल भावनाओं को बादल के माध्यम से मुखर करता ,राग और भाव ले ताल सब एक साथ .बादल का मानवीकरण .बारहा पढने गुनगुनाने लायक रचना -"बादल जी बोलो क्या तुम भी पढने जाया करते हो "

Rachana said...

bahut masum si pyari kavita .
सुनते हैं तुमको ऊपर से सारी दुनिया दिखती है,
बोलो, क्‍या सचमुच ऊपर से प्‍यारी दुनिया दिखती है?
kitni sunder baat
bahut bahut badhai
saader
rachana

Kailash Sharma said...

बहुत ख़ूबसूरत रचना..

Shikha Kaushik said...

bahut sundar bal kavita .aabhar

Anupama Tripathi said...

sunder vartalaap badal se ...
badhai ramesh telang ji aur abhar zakir ali ji...