परी, कभी मेरे घर आना
-राजनारायण चौधरी
परी, कभी मेरे घर आना।
आना अपनी पॉंखें खोले,
उड़ती उड़ती हौले हौले,
आ मुझसे घुम मिल बतियाना।
परी, कभी मेरे घर आना।
सुघड़ दूधिया गोटे वाली,
जिसमें कढ़ी हुई हो जाली,
चूनर वह तन पर लहराना।
परी, कभी मेरे घर आना।
इंद्रधनुष के रंग चुराकर,
दे जाना धरती पर आकर,
तितली जैसे तुम इठलाना।
परी, कभी मेरे घर आना।
सैर करेंगे हम उपवन की,
बातें होंगी दूर गगन की,
मैं नाचूँगा, तुम कुछ गाना।
परी, कभी मेरे घर आना।
रात ढ़ले चॉंदनी झरे जब,
कोई ऑंखों नींद भरे जब,
लोरी गाकर मुझे सुलाना।
परी, कभी मेरे घर आना।
5 टिप्पणियाँ:
रात ढ़ले चॉंदनी झरे जब,
कोई ऑंखों नींद भरे जब,
लोरी गाकर मुझे सुलाना।
परी, कभी मेरे घर आना।
bahut pyari rachna !!!
Bahut pyari baal rachna
बहुत ही सुन्दर कविता ऐसा लगा जैसे मैं खुद अपने मन की बातें गुनगुना रही हूँ... थैंक्यू अंकल!
परी, कभी मेरे घर आना।....
बहुत ही सुन्दर कविता
तब जाकर ये गीत बने
pari pyaari mere paas mere ghar bhi aana
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