
माँ समझती क्यों नहीं है?
- रमेश तैलंग
अब नहीं मैं दूध पीता एक बच्चा
माँ समझती क्यों नहीं है?
चाहता हूं, मैं बिताऊं वक्त ज्यादा
दोस्तों के बीच जा कर,
चाहता हूं, मैं रखूँ दो-चार बातें
सिर्फ अपने तक छुपाकर,
पर मेरे आगे से डर की श्याम छाया
दूर हटती क्यों नहीं है ?
छोड़ आया हूं कभी का बचपना, जो
सिर्फ जिद्दी, मनचला था,
हो गया है अब बड़ा सपना कभी जो
थाम कर उंगली चला था,
पर बड़ों की टोका-टोकी वाली आदत
क्यों, बदलती क्यों नहीं है?