-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
सागर से गागर भर लाते, बादल काले-काले।
लाते साथ हवा के घोड़े दम-खम, फुर्ती वाले।
कभी खेत में, कभी बाग में, कभी गाँव में जाते।
कहीं निकलते सहमे-सहमे, कहीं दहाड़ लगाते।
कहीं छिड़कते नन्हीं बूँदें, कहीं छमा-छम पानी।
कहीं-कहीं सूखा रह जाता, जब करते नादानी।
जहाँ कहीं भी जाते बादल, मोर पपीहा गाते।
सब के जीवन में खुशियों के इन्द्रधनुष बिखराते।
बड़े प्यार से कहती धरती, आओ बादल आओ।
तुम अपनी जल की गागर से सबकी प्यास बुझाओ।
7 टिप्पणियाँ:
रजनीश जी ॐ प्रकाश नदीम जी की बेहतरीन ग़ज़ल सुनवाने के बाद आपने बेहतरीन बाल गीत ताज़ा हवा के झोंके सा "जहां कहीं भी जाते बादल मोर पपीहा गाते "सुनवाया .त्रिलोक सिंह थाकुरेला साहब बहुर सुन्दर बाल गीत लिख रहें हैं .बधाई उन्हें .ऐसे ही लिखतें रहें बाल साहित्य का संवर्धन करते .
प्यारी रचना !!!!
bhut pyari rachna....
अनमोल मोती
बहुत-बहुत आभार लिंकमैन को--
बहुत सुन्दर ..वर्षा का आह्वान करती अच्छी रचना
बड़े प्यार से कहती धरती, आओ बादल आओ।
तुम अपनी जल की गागर से सबकी प्यास बुझाओ।
The poem contains universal truth about dharateemata and badala(the cloud) without their kindness we can't survive.
बहुत सुन्दर बाल कविता है त्रिलोक सिंह ठकुरेला जी की।
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