-श्यामसुंदर श्रीवास्तव 'कोमल'
मेरे द्वारे बहुत पुराना, पेड़ खड़ा है पीपल का।
मैं तो बैठ पढ़ा करता हूँ, इसकी शीतल छाँव में।
इसके जैसा पेड़ नहीं है, दूजा कोई गाँव में।
बाकी सबके सब छोटे हैं, बरगद हो या कटहल का।
मेरे द्वारे बहुत पुराना, पेड़ खड़ा है पीपल का।
पंचों की चौपाल सदा ही, लगती है इसके नीचे।
बैठ यहीं पर करते संध्या, बाबा आँखों को मींचे।
दादी रोज चढ़ाती इस पर भरा हुआ लोटा जल का।
मेरे द्वारे बहुत पुराना, पेड़ खड़ा है पीपल का।
साँझ-सकारे इसमें आकर पंछी शोर मचाते हैं।
चिहुँक-चिहुँक कर फुदक-फुदक कर, मीठा गीत सुनाते हैं।
तुम भी इसे देखने आना, पेड़ बड़ा है पीपल का।
मेरे द्वारे बहुत पुराना, पेड़ खड़ा है पीपल का।
10 टिप्पणियाँ:
आइए इस पर्यावरण दिवस पर हम यह संकल्प उठाएं, अपने घर में कम से कम एक अदद तो वृक्ष लगाएं।
उसी पीपल के फ़ोटो भी दिखा देते, आज के दिन,
आपकी नेक राय, जो हर एक को माननी चाहिए
आज भी पेड़ खड़ा है बहुत आश्चर्य कि बात है आज जरुरत है ना सिर्फ पर्यावरण बचने कि उसे सवरने कि भी. ये बात सामाजिक पर्यावरण पर भी लागू होती है
पर्यावरण दिवस पर सार्थक प्रयास ।
पर्यावरण दिवस रचना बहुत बढ़िया पोस्ट की है आपने!
बहुत अच्छीदिन के वक्त भी ऑक्सीजन देने वाला और दीर्घजीवी होता है। आश्चर्य नहीं कि इसकी पूजा वर्षों से की जाती रही है। जितनी चमक इसके पत्तों में होती है,किसी और में नहीं।
सुंदर कविता!
बधाई!
बहुत सुन्दर कविता है । अच्छा लगा ।
हमें भी वह पेड़ देखना है..सुन्दर बाल-गीत..बधाई.
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'पाखी की दुनिया ' में आपका स्वागत है !!
कोमल भाव लिए शब्द -चित्रात्मक गीत .
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