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मम्मी देखो सूरज निकला, कई दिनों में धूप खिली है।


मम्मी देखो सूरज निकला
कई दिनों में धूप खिली है। 

घुमड़-घुमड़ कर काले बादल
बारिश कर जाते थे झर-झर। 

हम कोनों में छिप जाते थे
आँधी बिजली से डर-डर कर। 

जाने कैसे आज अचानक
थोड़ी राहत हमें मिली है।

इक्का दुक्का बादल अब भी
घूम रहे हैं आसमान में। 

कभी अचानक मिल जाते हैं
बातें करते कान-कान में। 

सैर सपाटा करने को फिर
चिड़ियों की टोली निकली है।

मम्मी, पापा जी से कह दो
संभल-संभल कर जाएँ दफ्तर। 

कपड़े गंदे हो सकते हैं
छींटे आ जाते हैं उड़कर। 

नीली पैंट न हरगिज़ पहनें
कुछ दिन पहले नई सिली है।

-योगेन्द्र कुमार लल्ला-

7 टिप्पणियाँ:

समय चक्र said...

बढ़िया बाल गीत प्रस्तुति....जाकिर भाई आभार

रानी पात्रिक said...

बहुत खूब। बच्चों का मन खूब पढ़ा है। दादा-दादी सी बातें करते बच्चे-
नीली पैंट न हरगिज़ पहनें
कुछ दिन पहले नई सिली है।

मज़ा आ गया। बधाई।

Manish aka Manu Majaal said...

बड़ा सरल मासूम सा कवितानुमा गीत लिखा है लल्ला साहब ने, सभी लल्ले मुन्नों को खूब भाएगा... बधाई ....

Chaitanyaa Sharma said...

सुंदर सा बाल गीत ....अच्छा लगा

Anonymous said...

Ati sundar.

Prerna Gupta, Lucknow

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर बालगीत!
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
--
आपकी पोस्ट की चर्चा तो बाल चर्चा मंच पर भी लगाई है!
http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/11/29.html

डॉ. नागेश पांडेय संजय said...

बच्चे के दिल को छूने में समर्थ सुन्दर कविता के लिए आपको बधाई .