
-विष्णुकांत पाण्डेय-
घोड़ा नाचे, हाथी नाचे,
नाचे सोन चिरैया।
किलक किलक कर बंदर नाचे,
भालू ता-ता-थैया।
ठुमक-ठुमक खरहा नाचे,
ऊंट, मेमना, गैया।
आ पहुँचा जब शेर सामने,
मची 'हाय रे दैया।'
घोड़ा नाचे, हाथी नाचे,
नाचे सोन चिरैया।
किलक किलक कर बंदर नाचे,
भालू ता-ता-थैया।
ठुमक-ठुमक खरहा नाचे,
ऊंट, मेमना, गैया।
आ पहुँचा जब शेर सामने,
मची 'हाय रे दैया।'
16 टिप्पणियाँ:
bhut khoob
बहोत प्याली कविता है।
Majedar rachna
छुन्दर...........
भाहोत छुन्दर................
वाह! बहुत ही सुन्दर!
छचमुच छुन्दल।
छचमुच छुन्दल।
Bahut Badhiaya.
Bahut Badhiaya.
बढ़िया लगी..मजेदार.
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'पाखी की दुनिया' में 'सपने में आई परी' !!
बहुत बहुत शुक्रिया .
आज आपके सारे ब्लॉग देखे .सब अच्छे हैं लेकिन बाल -मन का अपना ही मज़ा है .........कभी बाल दिवस पर अपनी पहली लिखी कविता पोस्ट करुँगी जो आपका ये ब्लॉग देखने के बाद अचानक याद हो आई . बचपन की याद दिलाने के लिया फिर से शुक्रिया .
आपकी कविताएं अच्छी लगीं।
बालसुलभ.....प्रेरक.....मनोरंजक
इसी प्रकार लिखते रहो।
सद्भावी - डॉ० डंडा लखनवी
बहुत अच्छी बाल रचना बधाई
अरे वाह!
यहाँ तो बच्चों के लिए बहुत कुछ है!
आज पहली बार इस ब्लॉग पर आई ,सच मज़ा आ गया एक बार पढ़ना शुरू किया तो ख़ुद को रोक ही नहीं पाई ,
बहुत उम्दा !
अब तो इस को follow करना ही पड़ेगा
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