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बगुला भगत : रूपचंद्र शास्‍त्री मयंक

बाल कविता-बगुला भगत

बगुला भगत बना है कैसा।
लगता एक तपस्‍वी जैसा।

अपनी धुन में अड़ा हुआ है। 
एक टांग पर खड़ा हुआ है। 

धवल दूध सा उजला तन है। 
जिसमें बसता काला मन है। 

मीनों के कुल का घाती है। 
नेता जी का यह नाती है। 

वैठा यह तालाब किनारे। 
छिपी मछलियां डर के मारे। 

आंख मूंद कर सोच रहा है। 
पंखों को यह नोच रहा है। 

मछली अगर नजर आ जाये। 
मार झपट्टा यह खा जाये। 

इसे देख धोखा मत खाना। 
यह ढ़ोंगी है जाना माना।

10 टिप्पणियाँ:

vandana gupta said...

वाह! बहुत ही खूबसूरत संदेश के साथ बाल कविता लिखी है ।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सुंदर सार्थक बाल कविता ....

रचना said...

sahii samjhey to heading
बगुला भगत : रूपचंद्र शास्‍त्री मयंक

mae sae : रूपचंद्र शास्‍त्री मयंक
hataa dae

padhtey samay lagtaa haen
बगुला भगत रूपचंद्र शास्‍त्री मयंक
jo vaakya kaa matlab hi badal daetaa haen

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा रचना.

Taarkeshwar Giri said...

एक टांग पे खड़ा या अड़ा, जो भी हो , हैं तो दूध सा पड़ा.

Mukesh said...

बगुला पर अच्छी कविता
बगुला भगत्
ब्लॉग जगत् में तो एक से बढ़कर एक बाल कवितायें पढ़ने को मिलती हैं।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...............बालसुलभ...........प्रेषणीय

Dr (Miss) Sharad Singh said...

मीनों के कुल का घाती है।
नेता जी का यह नाती है।

बहुत अच्छी कविता ...सचमुच मजा आ गया.....

Patali-The-Village said...

सुंदर सार्थक बाल कविता|

गीता पंडित said...

बहुत सुंदर...क्या बात है...

बधाई...

Dinesh pareek said...

BAHUT HI SUNDAR HAI APKA BLOG
OR IS KE ABRE ME KUCH KAHAN SAYAD MERE PASS WORD HI NAHI HAI

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