बाल कविता-बगुला भगत
बगुला भगत बना है कैसा।
लगता एक तपस्वी जैसा।
अपनी धुन में अड़ा हुआ है।
एक टांग पर खड़ा हुआ है।
धवल दूध सा उजला तन है।
जिसमें बसता काला मन है।
मीनों के कुल का घाती है।
नेता जी का यह नाती है।
वैठा यह तालाब किनारे।
छिपी मछलियां डर के मारे।
आंख मूंद कर सोच रहा है।
पंखों को यह नोच रहा है।
मछली अगर नजर आ जाये।
मार झपट्टा यह खा जाये।
इसे देख धोखा मत खाना।
यह ढ़ोंगी है जाना माना।
10 टिप्पणियाँ:
वाह! बहुत ही खूबसूरत संदेश के साथ बाल कविता लिखी है ।
सुंदर सार्थक बाल कविता ....
sahii samjhey to heading
बगुला भगत : रूपचंद्र शास्त्री मयंक
mae sae : रूपचंद्र शास्त्री मयंक
hataa dae
padhtey samay lagtaa haen
बगुला भगत रूपचंद्र शास्त्री मयंक
jo vaakya kaa matlab hi badal daetaa haen
बहुत उम्दा रचना.
एक टांग पे खड़ा या अड़ा, जो भी हो , हैं तो दूध सा पड़ा.
बगुला पर अच्छी कविता
बगुला भगत्
ब्लॉग जगत् में तो एक से बढ़कर एक बाल कवितायें पढ़ने को मिलती हैं।
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...............बालसुलभ...........प्रेषणीय
मीनों के कुल का घाती है।
नेता जी का यह नाती है।
बहुत अच्छी कविता ...सचमुच मजा आ गया.....
सुंदर सार्थक बाल कविता|
बहुत सुंदर...क्या बात है...
बधाई...
BAHUT HI SUNDAR HAI APKA BLOG
OR IS KE ABRE ME KUCH KAHAN SAYAD MERE PASS WORD HI NAHI HAI
BAUT ACCHA LAGA APP MERE BLOG PE AYE
ASHA KARTA HU APP KA SATH MILTA RAHEGA
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