अले, छुबह हो गई, आँगन बुहाल लूं,
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ।
कपले ये धूल भले, मैले हैं यहाँ।
ताय भी बनाना है, पानी भी लाना है।
पप्पू की छर्ट फटी, दो ताँके दाल लूं।
कलना है दूध गलम, फिर लाऊं तोस्त नलम।
झट छे इछतोब जला, बलतन फिल एक चढ़ा।
कल के ये पले हुए आलू उबाल लूँ।
आ गया ‘पलाग’ नया, काम छभी भूल गया।
जल्दी में क्या कल लूँ, चुपके से अब भग लूँ।
छंपादक दादा के नए हाल-चाल लूँ।
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ।
कपले ये धूल भले, मैले हैं यहाँ।
ताय भी बनाना है, पानी भी लाना है।
पप्पू की छर्ट फटी, दो ताँके दाल लूं।
कलना है दूध गलम, फिर लाऊं तोस्त नलम।
झट छे इछतोब जला, बलतन फिल एक चढ़ा।
कल के ये पले हुए आलू उबाल लूँ।
आ गया ‘पलाग’ नया, काम छभी भूल गया।
जल्दी में क्या कल लूँ, चुपके से अब भग लूँ।
छंपादक दादा के नए हाल-चाल लूँ।
6 टिप्पणियाँ:
Bahut sundar, achchhee prastuti !
सुन्दर शब्द रचना के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
इस नन्ही सी प्याली सी कविता पल कर हमतो भी अपना भुला बिसला बचपन याद आ गया.....भोत ही सुन्दल
regards
वाह बाल कवितायें लिखते लिखते आपका भी बचपन लौट आया है सुन्दर रचना शुभकामनायें
बाल कविता यदि बच्चों की भाषा में हो तो कहने ही क्या. सुंदर.
तोतली बोली में बाल कविता वास्तव में बल कविता का निर्वाह कर गई .
लमेस तेलंग जी की बधाई . उनके साथ कई बार साथ साथ पत्रिकाओं में छपे हैं .
यादें ताज़ा हो गईं.
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