-सुरेश विमल-
लगते हैं केले के पत्ते, हाथी जैसे कान।
पीपल के पत्तों की होती चूहे जैसी पूँछ,
ताड़-वृक्ष के पत्ते लगते रावण की सी मूँछ।
पात कमल के देख-देख आता कछुए का ध्यान।
दिखते हैं खटमल जैसे पत्ते हैं इमली के,
सेही के शरीर से होते पत्ते नागफनी के।
पात खजूरों के लगते हैं तरकस के-से बान।
लगते हैं केले के पत्ते, हाथी जैसे कान।
पीपल के पत्तों की होती चूहे जैसी पूँछ,
ताड़-वृक्ष के पत्ते लगते रावण की सी मूँछ।
पात कमल के देख-देख आता कछुए का ध्यान।
दिखते हैं खटमल जैसे पत्ते हैं इमली के,
सेही के शरीर से होते पत्ते नागफनी के।
पात खजूरों के लगते हैं तरकस के-से बान।
6 टिप्पणियाँ:
सुन्दर बाल गीत्
bahut badhiya lagi yeh baal kavita....
bahut hi pyari kavita lagi.sunder.
बहुत बढ़िया लगा बाल गीत सुन्दर प्रस्तुति . बधाई .
Nice Poem
सुंदर कविता
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