–सूर्य कुमार पाण्डेय–
कुछ की काली, कुछ की भूरी, कुछ की होती नीली आँख।
जिसके मन में दुख होता है, उसकी होती गीली आँख।
सबने अपनी आँख फेर ली, सबने उससे मीचीं आँख।
गलत काम करने वालों की, रहती हरदम नीची आँख।
आँख गड़ाते चोर–उचक्के, चीजों को कर देते पार।
पकड़े गए चुराते आँखें, आँख मिलाने से लाचार।
आँख मिचौनी खेल रहे हम, सबसे बचा–बचाकर आँख।
भैया जी मुझको धमकाते, अक्सर दिखा–दिख कर आँख।
आँख तुम्हारी लाल हो गई, उठने में क्यों करते देर।
आँख खोलकर काम करो सब, पापा कहते आँख तरेर।
मम्मी आँख बिछाए रहतीं, जब तक हमें न लेतीं देख,
घर भर की आँखों के तारे, हम लाखों में लगते एक।
5 टिप्पणियाँ:
bahut badhiya baal geet..
aankhon ki vishasheta laazwaab aur behatreen kavita...badhayi
Aankhon ki baat nirali hai.
आँख तुम्हारी लाल हो गई, उठने में क्यों करते देर।
आँख खोलकर काम करो सब, पापा कहते आँख तरेर।
वाह बहुत सुन्दर..........
मम्मी आँख बिछाए रहतीं, जब तक हमें न लेतीं देख,
घर भर की आँखों के तारे, हम लाखों में लगते एक।
सुन्दर!
बातों हो बातों में आँखों की कहानी समझा दी बच्चों को आपने ......... अच्छा लिखा है ..
बहुत निराले ढंग से आँखों की बातें
बहुत खूब
Post a Comment