यह कैसी लाचारी है
बस्ता मुझसे भारी है।
कंधा रोज भड़कता है, जाने क्या क्या बकता है,
लाइलाज बीमारी है, बस्ता मुझसे भारी है।
जब भी मैं पढ़ने जाता, जगह जगह ठोकर खाता,
बस्ता क्या अलमारी है, बस्ता मुझसे भारी है।
कान फटे सुनते सहते, मुझे देखकर सब कहते,
बालक नहीं, मदारी है, बस्ता मुझसे भारी है।
12 टिप्पणियाँ:
bahut sateek
bahut umda !
bhut sundr bachpan yaad aa gya....
regards
बहुत बढिया लिखा है .. सचमुच आजकल बच्चों के बस्ते बहुत भारी हो गए हैं ।
Vaah........ bahoot hi pyaari shikaayat ...... sach much aaj kal baste bahoot hi bhaari hain bachon ke
आपकी कविता को पढ़कर अपनी बिटिया का बस्ता याद आया।
वाह आप तो कमाल पे कमाल किये ज रहे है अब कविता मे भी मुद्दो को उठाते है .............अति सुन्दर मन खुश हो गया.....बधाई
मुश्किल में है बच्चा
बच्चे से भारी बस्ता
सूझे है न रस्ता
शिक्षक को काटे कुत्ता
सुन्दर कविता.
बच्चों की व्यथा को अच्छी तरह प्रस्तुत किया आपने ... बधाई..
वाकई में मज़ा आ गया....
यह कविता लाजवाब है.....
bahut badhiya
I totally agree
वाकई में मज़ा आ गया....
यह कविता लाजवाब है....
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