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मजेदार लगते हैं कितने यार, बताशे पानी के

बताशे पानी के 
-सुंदरलाल अरूणेश-

मजेदार लगते हैं कितने यार, बताशे पानी के। 
देता लच्‍छूराम रूपये में चार बताशे पानी के। 

इनका पानी याद करो, तो मुँह में भर आता पानी, 
इन्‍हें गोलगप्‍पा भी कहते, सूरत जानी पहचानी। 
इसीलिए पाते हैं सबका प्‍यार, बताशे पानी के।

थोड़ी मिली खटाई इसमें, खुश्‍बूदार मसाला है, 
टिक्‍की, खस्‍ता से भी बढ़कर इनका स्‍वाद निराला है। 
पापड़ जैसे कड़क कुरमुरे यार बताशे पानी के।

देर नहीं लगती है, मुँह में रखते ही ये घुल जाते, 
कभी कभी मम्‍मी पापा भी इन्‍हें देखकर ललचाते। 
खाओ भी चटपटे जायकेदार बताशे पानी के।

5 टिप्पणियाँ:

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर बाल गीत लिखते हैं आप .. आपके कई बाल गीत मेरी बहन ने अपनी बच्‍ची को याद करवाए हैं .. पानी के बताशो की तरह ही टेस्‍ट है इसमें !!

ओम आर्य said...

mere bhi muh me paani aa gaye itane sundarta se warnan ki gayi hai ki aisa hona lazami hai.....sundar

दिगम्बर नासवा said...

Hamaare muh mein bhi paani aa gaya.....batashon ko padh kar.......

Akshitaa (Pakhi) said...

Batashe to mujhe bahut priya hain...yammi-yammi.


Is bar Pakhi ke blog par dekhen nai Photo.

seema gupta said...

पानी के बताशो की बात की तो मुह में पानी ही आ गया......मजेदार

regards