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–उषा यादव–
बिल्कुल नहीं आज मानेंगे, चाहे लाख मनाओ जी।
गुस्सा हैं हम, जाओ जी।
हर इतवार हमें चिडियाघर, चलने का लालच देंगे।
और उसी दिन दुनिया भर के कामों को फैला लेंगे।
बुद्धू हमें समझ रखा है, चाकलेट सेबहलाते।
टूटी आस लिये हम बच्चे, खड़े टापते रह जाते।
नहीं खायेंगे,नहीं खायेंगे, टाफी लाख खिलाओ जी।
गुस्सा हैं हम, जाओ जी।
झूठ अगर बच्चे बोलें तो, खूब डांट वे खाते हैं।
यही काम पापाजी करते, और साफ बच जाते हैं।
मम्मी बच्चों के दल में मिल, इनको डाँट लगाओ तुम।
वरना तुम से भी कुट्टी है, दूर यहाँ से जाओ तुम।
मुँह फूला ही रखेंगेअब, चाहे लाख हंसाओ जी।
गुस्सा हैं हम, जाओ जी।
बिल्कुल नहीं आज मानेंगे, चाहे लाख मनाओ जी।
गुस्सा हैं हम, जाओ जी।
हर इतवार हमें चिडियाघर, चलने का लालच देंगे।
और उसी दिन दुनिया भर के कामों को फैला लेंगे।
बुद्धू हमें समझ रखा है, चाकलेट सेबहलाते।
टूटी आस लिये हम बच्चे, खड़े टापते रह जाते।
नहीं खायेंगे,नहीं खायेंगे, टाफी लाख खिलाओ जी।
गुस्सा हैं हम, जाओ जी।
झूठ अगर बच्चे बोलें तो, खूब डांट वे खाते हैं।
यही काम पापाजी करते, और साफ बच जाते हैं।
मम्मी बच्चों के दल में मिल, इनको डाँट लगाओ तुम।
वरना तुम से भी कुट्टी है, दूर यहाँ से जाओ तुम।
मुँह फूला ही रखेंगेअब, चाहे लाख हंसाओ जी।
गुस्सा हैं हम, जाओ जी।
5 टिप्पणियाँ:
चुलबुली कविता है
छुटपन की प्यारी-सी कविता । आभार ।
हम ले जायेंगे तुम्हें घुमाने,
चलो हमारे साथ आओ जी,
इतना गुच्छा मत कलो,
अब तो मान जाओ जी....
बहुत ही सुन्दर कविता...लगता है मेरी बिटिया भी यही कहेगी...थोड़ी सी बड़ी होने पर....
वाह रजनीश जी..........सचमुच बच्चों की नाराजगी सही है..........लाजवाब लिखा
बाल मन को क्या खूब समझा है। बहुत सुन्दर।
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