छोटा होना बहुत बुरा है
-अश्वनी कुमार पाठक
भैया कहता मुझको पिन्ना।
दीदी कहती कितना घिन्ना।
साथी मुझे बनाते घोड़ा, और लगाते कसकर कोड़ा।
कहते कितना मरियल-अडि़यल, सरपट चलता नहीं निगोड़ा।
गोलू, भोलू सदा पीठ पर, करते रहते ता-ता धिन्ना।
मुझको कहते सभी अनाड़ी, खुद को मानें मँजा खिलाड़ी।
खतरे से हो जहाँ खेलना, कर देते हैं मुझे अगाड़ी।
ढ़ोल बजाते ढम ढम ढम ढम, टमकी बोले तड़-तड़ दिन्ना।
सबकी नजरों का मैं काँटा, खाता रहता दिन भर चाँटा।
छोटा होना बहुत बुरा है, कभी किसी ने दर्द न बाँटा।
तंग बहुत करते हैं मुझको, छोटू-मोटू, बिन्नी-बिन्ना।
भैया कहता मुझको पिन्ना।
दीदी कहती कितना घिन्ना।
5 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर बाल रचना!
बहुत ही मज़ेदार बाल-कविता!... लेकिन अंकल छोटा होना इतना भी तो बुरा नहीं उसके बहुत सारे फायदे भी हैं और बड़ा होना भी तो काम दुखदायी नहीं ना...?
बहुत खूबसूरत प्रस्तुति , बधाई .
bahut pyare blog par pyari balopyogi rachna,sunder ,ati sunder
बेहतरीन
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