बंदर जी अखबार छापते
-डॉ0 अरूणेन्द्र चन्द्र त्रिपाठी ‘अरूण’
बंदर जी अखबार छापते,
घर-घर जाकर स्वयं बॉंटते।
हाथी दादा के घर पहुँचे,
लगे झॉंकने ऊपर - नीचे।
हाथी ने जब सूँड़ बढ़ायी,
बन्दर ने अखबार थमाया।
शेर जमा था अपनी छत पर,
बंदर कूदे नीचे ऊपर।
उन्हें देख आते गुर्राया,
बंदर जी का सिर चकराया।
अखबार नहीं बाटूँगा आगे,
यह कहते बंदर जी भागे।
11 टिप्पणियाँ:
Achchhi lagi..aanand aa gaya..
बहुत अच्छा गीत मगर यह समझ में नहीं आया की बंदर जी का सर क्यों चकराया
बहुत रोचक बाल गीत..
बहुत रोचक गीत|
प्यारी ....सुंदर कविता ....
चलो, अखबार का टंटा खतम हुआ...अब बंदर को हमारे ब्लॉग के लिंक बांटना चाहिये. :)
बहुत मज़ेदार और प्यारी विता
कृप्या विता को कविता पढ़ें
बहुत ही सुन्दर और प्यारा-प्यारा गीत है ….
. बहुत ही सुन्दर और प्यारा-प्यारा गीत है ….
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