–डा0 मोहम्मद अरशाद खान–
गिरधर भैया अपने हाथों पाती मुझको लिखना।
लिखना अबकी बार खेत में, कैसे आए धान।
देर रात तक दादा गाते, अब भी लम्बी धान?
गऊघाट के मेले से तुम, क्या–क्या लेकर आए?
काली गाय के बछड़े क्या बड़े–बड़े हो आए?
साँझ ढ़ले तक खेल–खेलते, अब भी सुखना–दुखना?
गिरधर भैया अपने हाथों पाती मुझको लिखना।
चौपालों में देर रात तक, होते हंसी–ठहाके?
क्या रामू काका मानस की, चौपाई हैं गाते?
बूढ़े दादा से तुम सबने, कितनी सुनी कहानी?
लिखना उनसे बात ज्ञान की, तुमने कितन जानी।
सीख लिया अब कल्लू ने क्या, अ–आ–इ–ई पढ़ना?
गिरधर भैया अपने हाथों पाती मुझको लिखना।
जल्दी करना देर न करना, पाती झट भिजवाना।
टूटी–फूटी भाषा में ही, सबका हाल बताना।
फिर मत पूछो पाती पाकर, मन कितना खुश होगा।
नहीं दिया पाती, सोचो, दुख मुझको कितना होगा?
हरकारे की राह ताकती, रहती तेरी बहना।
गिरधर भैया अपने हाथों पाती मुझको लिखना।
लिखना अबकी बार खेत में, कैसे आए धान।
देर रात तक दादा गाते, अब भी लम्बी धान?
गऊघाट के मेले से तुम, क्या–क्या लेकर आए?
काली गाय के बछड़े क्या बड़े–बड़े हो आए?
साँझ ढ़ले तक खेल–खेलते, अब भी सुखना–दुखना?
गिरधर भैया अपने हाथों पाती मुझको लिखना।
चौपालों में देर रात तक, होते हंसी–ठहाके?
क्या रामू काका मानस की, चौपाई हैं गाते?
बूढ़े दादा से तुम सबने, कितनी सुनी कहानी?
लिखना उनसे बात ज्ञान की, तुमने कितन जानी।
सीख लिया अब कल्लू ने क्या, अ–आ–इ–ई पढ़ना?
गिरधर भैया अपने हाथों पाती मुझको लिखना।
जल्दी करना देर न करना, पाती झट भिजवाना।
टूटी–फूटी भाषा में ही, सबका हाल बताना।
फिर मत पूछो पाती पाकर, मन कितना खुश होगा।
नहीं दिया पाती, सोचो, दुख मुझको कितना होगा?
हरकारे की राह ताकती, रहती तेरी बहना।
गिरधर भैया अपने हाथों पाती मुझको लिखना।
5 टिप्पणियाँ:
बहन की अपने गत अनुभवों की प्रतीति और उसकी सहज संवेदना कितनी सहजता से मुखरित हो रही इस रचना में । यह आग्रह, आग्रह के भीतर छिपी कशिश और कसक लुभा रही है आद्यन्त ।आभार ।
excellent
हरकारे की राह ताकती, रहती तेरी बहना।
गिरधर भैया अपने हाथों पाती मुझको लिखना।
गजब का आग्रह ।आभार ।
Man ko chhu lene waale bhaav.
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