–सूर्य कुमार पाण्डेय–
बिल्ली मौसी चलीं बनारस, लकर झोला–डंडा।
गंगा–तट पर मिला उन्हें तब मोटा चूहा पंडा।
चूहा बोला– बिल्ली मौसी, चलो करा दूं पूजा।
मुझ–सा पंडा, यहाँ घाट पर, नहीं मिलेगा दूजा।
बिल्ली बोली– ओ पंडा जी, भूख लगी है भारी।
पूजा नहीं, पेट पूजा की करो तुरन्त तैयारी।
समझ गया चूहा, बिल्ली मौसी का पंगा जी में।
टीका–चंदन छोड़ घाट पर कूदा गंगा जी में।
बिल्ली मौसी चलीं बनारस, लकर झोला–डंडा।
गंगा–तट पर मिला उन्हें तब मोटा चूहा पंडा।
चूहा बोला– बिल्ली मौसी, चलो करा दूं पूजा।
मुझ–सा पंडा, यहाँ घाट पर, नहीं मिलेगा दूजा।
बिल्ली बोली– ओ पंडा जी, भूख लगी है भारी।
पूजा नहीं, पेट पूजा की करो तुरन्त तैयारी।
समझ गया चूहा, बिल्ली मौसी का पंगा जी में।
टीका–चंदन छोड़ घाट पर कूदा गंगा जी में।
10 टिप्पणियाँ:
हे हे हे, हे हे हे, लिज़्ज़त पापड़! मज़ेदार!
अब बिल्ली की भूख कैसे पूरी हुई.
सुन्दर.........
समझ गया चूहा, बिल्ली मौसी का पंगा जी में।
टीका–चंदन छोड़ घाट पर कूदा गंगा जी में
अच्छी रचना।
बड़ी अच्छी रचना | मन को लुभा गयी | मैंने इस कविता को ब्लॉग भारती में लिंक किया है | कल आप इसे वहां देख सकते हैं |
Swasth bal-sahitya rachne walon ke har prayas ki sarahna honi chaiye.Shubkamnayen.
choohe और billi का sundar खेल khela है आपने ...........
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