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नील गगन पर चमकें तारे

नील गगन पर चमकें तारे
-प्रत्‍यूष गुलेरी

नील गगन पर चमकें तारे।
सुंदर सुंदर प्‍यारे प्‍यारे।।

कभी दीखते ढ़ेरों सारे।
लगते करते खूब इशारे।।

चंदा के संग चलते रहते।
सर्दी गर्मी सहते रहते।।

भाता इनको आना जाना।
आँख झपकते झट छिप जाना।।

आँगन में हम खाट बिछाए।
देखा करते दूध नहाए।।

कठिन बड़ा है इनको गिनना।
इनसे न हो सकता मिलना।।

...जाड़ा तन मन लूट रहा है।


 
जाड़ा बुरा है मेरे भाई
-प्रत्‍यूष गुलेरी

बूढ़ों पर सच आफत आई।
जाड़ा बुरा है मेरे भाई।।

मन लगता न आज कहीं है।
दुश्‍मन खाना बना दही है।

दाँत घड़ी से टिक टिक बजते।
आग मिले सुख साँसें भरते।

ठिठुर-ठिठुर दम टूट रहा है।
जाड़ा तन मन लूट रहा है।

धूप खिले तो दौड़े आएँ।
मुट्ठी भर तन को गरमाएँ।।