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दिन सहमे-सिकुडे से लगते, रातें बडी लड़ैया....

जाड़े आये 

दिन सहमे-सिकुडे से लगते,
रातें बडी लडैया...
जाड़े आये भैया।

खींच-खींच सूरज की चादर,
रजनी पाँव पसारे।
काना फूँसी करें उघारे,
थर्..थर्..चन्दा-तारे।
धूप बेचारी ...हारी,
करती जल्दी गोल बिछैया...
जाड़े आये भैया।

लदे फदे कपडों में निकलें,
चुन्नू-मुन्नू भाई।
मम्मी के हाथों में नाचे,
दिन भर ऊन-सलाई।
किट्-किट्..करते दाँत,
कंठ से सी...सी दैया--दैया।
जाड़े आये भैया।

दुश्मन लगता ठण्डा पानी,
दोस्त है धूप सुनहली.
देर रात बैठे अलाव पर,
करते यादें उजली।
लगें अजनबी से अब तो,
ये नदिया ताल तलैया...।
जाड़े आये भैया।
अमरूदों ने मीठी-मीठी 
खुशबू है फैलाई।
गोभी, गाजर, मटर, टमामर 
ने बारात सजाई ।
गन्ने हो गये रस की गागर,
सरसों भूल-भुलैया...
जाड़े आये भैया।

खेलो, खालो, पढ लो सो लो,
अब तुम जी भर-भऱ के,
कोई काम करो मत भैया,
घबरा के डर-डर के ।
---सर्दी लग जायेगी ---कहते,
हारे बेशक मैया।
जाड़े आये भैया।

चुप रहना या पीछे हटना, लगे उन्‍हें अपनी तौहीन।

बुलबुल के बच्‍चे
-गिरिजा कुलश्रेष्‍ठ

बुलबुल के थे अण्‍डे तीन।
उनसे निकले बच्‍चे तीन।

माँ उनको नादान समझती,
लेकिन वे हैं बड़े जहीन।

कल तक देख नहीं पाते थे,
चीं चीं चीं चीं चिचियाते थे।

लेकिन आज इरादे उनके,
उड़ जाएं लंका या चीन।

लगने लगा घोंसला छोटा,
दाने दुनके का भी टोटा।

चोंच खोल चिल्‍लाते रहते,
खाने के बेहद शौकीन।

जब कोई भी आहट आती,
गर्दन तान फुलाते छाती।

चुप रहना या पीछे हटना,  
लगे उन्‍हें अपनी तौहीन।

बातों-बातों में ही तुमने, मारे डंक बहत्तर जी ।


सुनो-सुनो ओ मच्छर जी।
हो तुम कितने निष्ठुर जी।

बातों-बातों में ही तुमने,
मारे डंक बहत्तर जी ।

नन्हे नाजुक लगते हो,
पर दिल के पूरे पत्थर जी।

पाठ पढे़ ना दया-धरम का,
हो तुम निपट निरक्षर जी ।

पढ़ने दो ना लिखने दो,
ना कहीं चैन से सोने दो।

करके रखा नाक में दम,
यह ठीक नहीं है मिस्टर जी।

कछुआ-वछुआ मार्टिन-आर्टिन,
सब उपाय बेकार हुए।

मच्छरदानी में भी आ जाते
हो, कितने मट्ठर जी ?

लेकिन एक बात पर अपनी,
अकल खा रही चक्कर जी।

क्या मिलता है तुम्हें खून में,
घुली हुई क्या शक्कर जी ?