जूते की पुकार
रमेश तैलंग
फट गया हूं मैं तले से, कट गया हूं मैं गले से।
लद गया मेरा जमाना, हो गया हूं अब पुराना।
आ पड़ी है जान पर, रुकने लगे सब काम मेरे।
हो कहां, मेरी खबर लो अब तो मोचीराम मेरे!
एक बूढ़े दादा जी हैं, छोड़ते मुझको नहीं हैं।
थक गया हूं रोज कहकर, चल रहा हूं बस घिसटकर।
व्यर्थ ही, लगता, गए सब मिन्नतें, 'परनाम' मेरे।
हो कहां, मेरी खबर लो अब तो मोचीराम मेरे!
ऑपरेशन की जरूरत, है यही बचने की सूरत।
देर कर दी और थोड़ी, जान जायेगी निगोडी।
वो कबाड़ी भी न देगा चार पैसे दाम मेरे।
हो कहां, मेरी खबर लो अब तो मोचीराम मेरे!
रमेश तैलंग
फट गया हूं मैं तले से, कट गया हूं मैं गले से।
लद गया मेरा जमाना, हो गया हूं अब पुराना।
आ पड़ी है जान पर, रुकने लगे सब काम मेरे।
हो कहां, मेरी खबर लो अब तो मोचीराम मेरे!
एक बूढ़े दादा जी हैं, छोड़ते मुझको नहीं हैं।
थक गया हूं रोज कहकर, चल रहा हूं बस घिसटकर।
व्यर्थ ही, लगता, गए सब मिन्नतें, 'परनाम' मेरे।
हो कहां, मेरी खबर लो अब तो मोचीराम मेरे!
ऑपरेशन की जरूरत, है यही बचने की सूरत।
देर कर दी और थोड़ी, जान जायेगी निगोडी।
वो कबाड़ी भी न देगा चार पैसे दाम मेरे।
हो कहां, मेरी खबर लो अब तो मोचीराम मेरे!
10 टिप्पणियाँ:
Majedar Kavita hai.
Minakshi Pant, Ludhiyana
बहुत ही सुंदर बाल रचना
fantastically written...
loved the hidden sarcasm in it.
वाह!
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति!
जूते पर ऐसी कविता! बढिया। प्रवाहमयी।
भई वाह ,पढ कर मन खुश होगया ।
सभी सहृदय सुविग्यों का हार्दिक आभार जिन्होंने इस बाल कविता को पसंद किया और अपनी प्रतिक्रियाओं से मुझे उपकृत किया. -रमेश तैलंग
मैं यह सोच रही हूँ ---अगर बच्चे अभिनय के साथ इस बाल गीत के बोल बोलेंगे तो कितने अच्छे लगेंगे I
हो कहाँ ,मेरी खबर लो अब तो मोचीराम मेरे
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सुन्दर मनोहर .एक प्रवृत्ति का उदघाटन करती बेहतरीन रचना ....दादा जी का जूता ...
joote par rochak kavita
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