- डॉ0 मधुसूदन साहा -
अपनी भाषा हिन्दी है
हर माथे की बिन्दी है।
जरा बोलकर देखो तु
कितनी सरस सुहानी है,
मां की लोरी-सी कोमल
रोचक नई कहानी है,
राधा के पग की पायल,
कान्हा की कालिन्दी है।
इसे राष्ट्र ने मान दिया
संविधान में अपनाकर,
अब दायित्व निभाना है
इसका पूरा सपना कर,
फिर निकालता रहता क्यों,
यूं 'हिन्दी की चिन्दी' है।
इसे सीखना चाहो तो
झट जुबान पर चढ़ जाती,
बस थोड़ी-सी चाहत से
दादी सब कुछ पढ़ पाती,
स्वेच्छा से सब सीख रहे
नहीं कहीं पाबंदी है।
नहीं कहीं पाबंदी है।
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